एक बार स्वामी विवेकानंद ट्रेन से यात्रा कर रहे थे और हमेशा की तरह भगवा कपडे और पगड़ी पहनी हुई थी। ट्रेन में यात्रा कर रहे एक अन्य यात्री को उनका ये रूप बहुत अजीब लगा और वो स्वामी जी को कुछ अपशब्द कहने लगा बोला- तुम सन्यासी बनकर घूमते रहते हो कुछ कमाते धमाते क्यों नहीं हो, तुम लोग बहुत आलसी हो, लेकिन स्वामी जी दयावान थे उन्होंने उसकी तरफ बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया और हमेशा की तरह चेहरे पे तेज लिए मुस्कुराते रहे ।
उस समय स्वामी जी को बहुत भूख लगी हुई थी क्यूंकि उन्होंने सुबह से कुछ खाया पिया नहीं था। स्वामी जी हमेशा दूसरों के कल्याण के बारे में सोचते थे अपने खाने का उन्हें ध्यान ही कहाँ रहता था । एक तरफ स्वामी जी भूख से व्याकुल थे वहीँ वो दूसरा यात्री उनको अप्शब्द और बुरा भला कहने में कोई कमी नहीं छोड़ रहा था । इसी बीच स्टेशन आ गया और स्वामी जी और वो यात्री दोनों उतर गए। उस यात्री ने अपने बैग से अपना खाना निकाला और खाने लगा और स्वामी जी से बोला अगर कुछ कमाते तो तुम भी खा रहे होते।
स्वामी जी बिना कुछ बोले चुपचाप थकेहारे एक पेड़ के नीचे बैठ गए और बोले मैं अपने ईश्वर पे विश्वास करता हूँ जो वो चाहेंगे वही होगा । अचानक ही कहीं से एक आदमी खाना लिए हुए स्वामी जी के पास आया और बोला क्या आप ही स्वामी विवेकानंद हैं और इतना कहकर को स्वामी जी के कदमों में गिर पड़ा और बोला कि मैंने एक सपना देखा था जिसमें खुद भगवान ने मुझसे कहा कि मेरा परम भक्त विवेकानंद भूखा है तुम जल्दी जाओ और उसे भोजन देकर आओ ।
बस इतना सुनना था कि वो यात्री जो स्वामी जी की आलोचना कर रहा था भाग कर आया और स्वामी जी के कदमों में गिर पड़ा, बोला- महाराज मुझे क्षमा कर दीजिये मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई है मैंने भगवान को देखा नहीं है लेकिन आज जो चमत्कार मैंने देखा उसने मेरे भगवान में विश्वास को बहुत ज्यादा बड़ा दिया है। स्वामी जी ने दया भाव से व्यक्ति को उठाया और गले से लगा लिया । स्वामी जी के जीवन से जुडी ये सत्य घटना बहुत अधिक प्रभावित करती है और बताती है कि किस तरह भगवान अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और पालन पोषण करते हैं ।
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