Sikhism Religion Hindi Stories
Sikhism धर्म एक ईष्वरवादी धर्म है। यह सिर्फ एक वाहेगुरु परमात्मा को मानता है। जिससा अन्य कोई नहीं है तथा जो समय व स्थान की बंदिषों से दूर है। एक वह ही सारी सृष्टि का रचनाहार है। पालनहार तथा नाष करने वाला है। सिख Sikh में धर्म एवं सदाचार साथ-साथ चलते है। आत्मीक प्रफुल्लता के लिए इखलाखी गुण एवं षुभ ग्रहण करने तथा उनको नित्य के जीवन में ढालना अति अनिवार्य है। सच्चाई, दया , विषाल हृदय, संतोष, नम्रता आदि गुणों को जीवन में धारण करने के लिए विषेष प्रयासों एंव साधनो की आवयकता है। गुरु साहिबान की जीवनीयों से हमें पता लगता हैं कि उन्होंने कैसे षुभ गुणों वाले आर्दष जीवन जीयें। सिख धर्म अवतार वाद में विष्वास नही रखता।
भाव वह यह नही मानता कि परमात्मा मानवीय षरीर धारण करता है। वह देवी देवताओं में विष्वास नहीे रखता। सिख धर्म में रीति रिवाजों एवं कर्मकाण्डों का कोई स्थान नहीं है। जैसे कि व्रत उपवास रखने, तीर्थ यात्रा करने, षगुन अपषगुन मानने पूर्णमासी अमावस्या, सक्रांति मनाना या तप आदि करने, मनुष्य के जन्म का उद्देष्य वाहेगुरु में अभेद होना हैं। यह अवस्था गुरु के उपदेष पर चलकर सच्चे नाम का स्मरण करके तथा सेवा एवं जरूरतमंदो की सहायता करके ही प्राप्त हो सकती है। नाम स्मरण को कीर्तन का एक बढिया साधन माना गया है। सिख धर्म भक्ति मार्ग अथवा प्रेम का मार्ग है। लेकिन साथ ही यह ज्ञान एवं कर्म मार्ग के महत्व को भी मान्यता देता है।
आत्मिक उन्नती के वास्तविक निषाने पर पहूंचने के लिए आकाष-पुरब की कृपा प्राप्त करना भी सिख धर्म मे अति अनिवार्य है। सिख धर्म एक नया वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक धर्म है। सिख फिलोसाफी के अनुसार पारिवारिक जीवन मुक्ति की प्राप्ति हुते कोई बंधर नहीं है। विष्व के दुखों क्लेषों एवं लोभ लालचों मे विचरते हुए भी मनुष्य को इनसे निर्लेभ रहने की आवष्यकता है। एक धैर्यवान सिख ने इस जगत में रहना लेकिन उसने अपना ध्यान इन साांसारिक समस्याओं एवं झंझटों से दूर रखना है। गुरु साहिब जी का उद्देष्य था कि जीवन का एक विषेष मनोरथ एवे विषेष लक्ष्य है।
अपने आप की पहचान करते तथा ईष्वर की प्राप्ति हेतु यह मानवीय जीवन का अवसर प्राप्त हुआ है लेकिन साथ ही मनुष्य को अपने किये कर्माे का फल भुगतना पडेगा। वह अपने किये कर्मों के फल भुगतने से बच नहीं सकता अतः कार्य करने के समय उसको बहुत सावधान रहना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह हैं कि श्री गुरुग्रंथ साहिब युगों-युग अटल गुरु है।
सिख ही एक ऐसा धर्म हैं जिसने कि अपनी पवित्र धर्मग्रंथ को धार्मिक शिक्षा दाता गुरु का दर्जा दिया है। दस गुरु साहिबों के पष्चात सिख धर्म में देहधारी गुरु का कोई स्थान नहीे है। गुरु की आत्मा ग्रंथ में एवं षरीर पंथ में सिख धर्म का अद्वितिय सिद्धांत है।
जाति पाति का विराध एवं मानवीय एकता धर्म एवं राजनीति का सुमेल, भक्ति एवं षक्ति कीरथ करना तथा बांटकर खाना, जीवित रहने ही माया एवं बंधनों और विकारों से मुक्ति, संगत एवं पंगत किसी पुजारी श्रैणी का ना होना स्त्री-पुरूष समानता, धार्मिक स्वतंत्रता एवं अत्याचारों के विरोध में कुर्बानी से पीछे न हटना आदि सिख धर्म की विषेषताऐं है। गुरु नानक देव से गुरु गोविन्दसिह तक सभी सिख गुरु केष धारी थे। यहां तक कि गुरुग्रंथ साहिब में जिन भक्तों एवं संतो की वाणी दर्ज हैं वे सभी भी केषधारी थे।
इसका स्पष्ट प्रमाण गुरुग्रंथ साहिब में भी मिलता है। प्रत्येंक सिख का केषधारी होना बहुत जरूरी है। केषों का अपमान करके सिख, सिख नही रहता वह पतित हो जाता है। कोई व्यक्ति जिसके केष रोम-बाल संपूर्ण नहीं है, वह सिख नहीे कहला सकता। सिख मतलब शिष्य और जो शिष्य अपने गुरु की आज्ञा न माने वह शिष्य सिख कैसा।
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