जिंदगी की सीढ़ी हिंदी कहानी
निरंतर मेहनत करना सफलता की सीढ़ी है। हर रोज थोड़ा-थोड़ा ज्ञान अर्जित करके हम विद्वान बन सकते हैं। किसी भी क्षेत्र की तरक्की, समृद्धि शिक्षित वर्ग पर निर्भर होती है। शिक्षित वर्ग समाज को एक नई दिशा देने का काम करता है। हम अपने अ'छे-बुरे के बारे में स्वयं सोच सकते हैं। इस दौर में हमें जमाने के साथ चलने के लिए शिक्षित होना अवश्य है। आज बिना शिक्षा के जिंदगी अंधेरे जैसी है। शिक्षा जिंदगी की तस्वीर बदल देती है।
दो भाई ऑफिस से थके हारे घर वापस लौट रहे थे। उनके फ्लेट एक बड़ी सी बिल्डिंग के 70वीं मंजिल पर थे। दोनों भाई जब घर पहुंचे तो मालूम हुआ की बिल्डिंग की लिफ्ट ख़राब हो गई है और फिर से चालू होने के कोई आसार भी नही है। अब सीड़ियाँ चढ़कर घर पहुँचने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नही था। दोनों भाई बातें करते करते सीडियाँ चढ़ने लगे और 21वीं मंजिल तक पहुँच गए। वहाँ पहुंचकर उन्हें मालूम हुआ की हम बेकार में ही अपने साथ इन थैलो का वजन उठाए जा रहे है जब की इन्हें कल वापिस ऑफिस ही ले जाना है। दोनों भाइयों ने ये तय किया की थैले 21वीं मंजिल पर ही रख दे और कल वापसी में इन्हें लेते जाएँगे।
वजन का बोज हल्का होने पर अब दोनों भाई तेजी से सीडियाँ चढ़ने लगे थे। जब 40वीं मंजिल पर पहुंचे तो दोनों को थकान का एहसास हुआ। इस वजह से लंबे समय तक प्यार से बातें करने वाले भाई अब तंग आ गए और एक दुसरे पर गलतिओं का दोषारोपण करते हुए सीडियाँ चढ़ने लगे। वह जब 60वीं मंजिल पर पहुंचे तो सोचा बस अब तो सिर्फ 21 मंजिल ही चढ़ना है। बेकार में हम आपस में उलझ रहे थे। अब दोनों शांत हो कर आगे बढ़ने लगे।
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आख़िरकार दोनों भाई 70वीं मंजिल पर पहुँच ही गए। वहाँ पहुंचकर बड़े भाई ने छोटे से कहा, लाओ अब दरवाजे की चाबी भी दो। छोटे भाई ने अफ़सोस मलते हुए कहा ओह चाबी तो उस थैले में ही रह गई जो हमने 21वीं मंजिल पर छोड़ दिया था। दोस्तों, यह छोटी सी कहानी हमारी जिंदगी से कुछ यूँ मेल खाती है, जिंदगी के पहेले 21 वर्ष हम माता-पिता की अपेक्षाओं को पूरा करने में बिताते है। 21 साल बाद हम अपेक्षाओं से मुक्त होने का अनुभव करने लगते है और ये मानकर की अब हमे कोई रोक-टोक नही करेगा। अपनी जिंदगी मौज, शौक और लुत्फ़ उठाने में बरबाद कर देते है।
जिंदगी जब 40 की दस्तक देती है तब मानों हम जैसे सोये हुए थे और जाग गए। अब हमे ये एहसास होने लगता है की मुझे जो करना चाहिए वो तो हुआ ही नही। जिंदगी के इस दौर में हमे दुसरो को सफल देखकर इर्षा होती है और इसका परिणाम ये होता है की हम घर के सदस्यों और सगे-संबंधी पर बेवजह गुस्सा और उन्हें कडवे शब्द कह डालते है। जब हम 60-61 को पहुँचते है तो सोचते है की ‘बहोत गई और थोड़ी रही अब काहे करे फिकर।
होते-होते जब 70 तक पहुँचते है तब जिंदगी को रिवाइंड करके सोचते है की 21 की उम्र में देखे सपने तो पुरे हुए नही बस यूँ ही जिंदगी अलविदा कह देगी। दोस्तों, जवानी में देखे सपनो को पूरा करने का सबसे बेहतर वक्त जवानी ही है। आप 70 साल के होने पर जो चाहते है उसकी तैयारी 21वें साल से ही कर दें।
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