पांच दशकों पहले की बात है। जब पुरुषों के मन में स्थूलता और चेतना बहुत रहती। सूरज की रोशनी में सोया हुआ पूरा गाव धीरे धीरे जाग रहे था मंदिर में बेल सबके कान में सुनाई दे रहे थे गाय भेस को लगायी हुई घंटी की आवाज से लगता है की पूरा गाव फिरसे जिन्दा हुआ। गाव में उडती धुल ने वातावरण में उसके गवाह उन्नत बनाया। और हर कोई अपने खुद के काम करने के लिए चला गया। गांव की महिलाओं के सिर बर्तन लेकर पानी भरने के लिए चली गयी। गांव में कोई खैर नहीं और न ही पीने का पानी । पानी लाने के लिए बहुत दूर चलना पड़ता था।
सभी महिलाओं तराजू की तरह दो बर्तन बांध कर धीरे धीरे चलती थी और दैनिक दो बर्तन पानी लाने के लिए जाते थे उसमे से एक बर्तन टूटा हुआ था जब दादीमा घर पहुचते है तब मटका आधा ही रहता था दादीमा जब पानी लेके आते तब सबको इस पर दया आती थी तो कुछ टूटे हुए मटके में से निकलता पानी को देख कर उसकी मजाक करते थे और बोलते थे की दादीमा आधा रास्ता तो साफ हो गया और ये बाकि का रास्ता क्या कुसूर? और कहते है की किसी को पानी पीना है तो चालो दादीमा का हरता फरता पानी का परब आ गया है।
दादीमा किसी से कोई जवाब देने के बिना घर की ओर चलते रहते है ये सब कुछ देखकर मटके को भी दुःख हो रहा था की मैं टूटा हुआ नहीं होता तो दादीमा को इतनी महेनत के बाद पानी तो पूरा मिल सकता था। दादीमा पानी भरके आ रहे थे तब गाव के छोटे बचे एकत्रित हो कर खेल रहे थे उसमे से एक बचे ने दादीमा के पास जाकर बोला की दादीमा तुम रोज २ मटके पानी के लाते हो पर इसमें तो एक मटका तो टूता हुआ है उसमे तो सारा पानी निकल जाता है तो आप नया मटका क्यों नहीं लेके हो?
दादीमा ने कहा: बेटा मुझे २ मटके पानी की जरुरत नहीं है ये टुटा हुइ मटके के लिए तो में यहा पहुचते पहुचते मेरा वजन भी कम हो जाता है और ये निचे देख एक साइड का रास्ता जहा टुटा हुआ मटका रहता है वहा मैंने बीज रोपण किया था और ये देखो ये इसमें कैसे फुल भी आ गए है और सब कुछ हरा हो गया है और दूसरी तरफ देखो ये बंजर भूमि है ये मटका तो मेरे अकेले के लिए ही है और ये टुटा हुआ मटका तो पुरे समाज के काम आएगा।
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