Saturday 21 November 2015

शिव और शंकर में अन्तर हिंदी

Difference of Shiv and Shankar

best hindi stories, hindi stories, all moral hindi stories, बहुत से लोग शिव और शंकर को एक ही मानते है, परन्तु वास्तव में इन दोनों में भिन्नता है। आप देखते है कि दोनों की प्रतिमाएं भी अलग-अलग आकार वाली होती है। शिव की प्रतिमा अण्डाकार अथवा अंगुष्ठाकार होती है जबकि महादेव शंकर की प्रतिमा शारारिक आकार वाली होती है। यहाँ उन दोनों का अलग-अलग परिचय, जो कि परमपिता परमात्मा शिव ने अब स्वयं हमे समझाया है तथा अनुभव कराया है स्पष्ट किया जा रह है।

* महादेव शंकर

1- यह ब्रह्मा देवता तथा विष्णु देवता की रथ सूक्ष्म लोक में, शंकरपुरी में वास करते है।

2- यह ब्रह्मा और विष्णु की तरह सूक्ष्म शरीरधारी है। इन्हें महादेव कहा जाता है परन्तु इन्हें परमात्मा नहीं कहा जा सकता।

3- ब्रह्मा देवता तथा विष्णु देवता की तरह यह भी परमात्मा शिव की रचना है।४। यह केवल महाविनाश का कार्य करते है, स्थापना और पालना के कर्तव्य इनके कर्तव्य नहीं है 

* परमपिता परमात्मा शिव

1- यह ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर द्वारा महाविनाश और विष्णु द्वारा विश्व का पालन कराके विश्व का कल्याण करते है।
2- यह चेतन ज्योति-बिन्दु है और इनका अपना कोई स्थूल या सूक्ष्म शरीर नहीं है, यह परमात्मा है।

3- यह ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर के लोक, अर्थात सूक्ष्म देव लोक से भी परे ब्रह्मलोक (मुक्तिधाम) में वास करते है।

4- यह ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर के भी रचियता अर्थात त्रिमूर्ति है।

* शिव का जन्मोत्सव रात्रि में क्यों ?

रात्रि वास्तव में अज्ञान, तमोगुण अथवा पापाचार की निशानी है। अत: द्वापरयुग और कलियुग के समय को रात्रि कहा जाता है। कलियुग के अन्त में जबकि साधू, सन्यासी, गुरु, आचार्य इत्यादि सभी मनुष्य पतित तथा दुखी होते है और अज्ञान-निंद्रा में सोये पड़े होते है, जब धर्म की ग्लानी होती है और जब यह भरत विषय-विकारों के कर्ण वेश्यालय बन जाता है, तब पतित-पावन परमपिता परमात्मा शिव इस सृष्टि में दिव्य-जन्म लेते है। इसलिए अन्य सबका जन्मोत्सव तो जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है परन्तु परमात्मा शिव के जन्म-दिन को शिवरात्रि ही कहा जाता है। अत: यहाँ चित्र में जो कालिमा अथवा अन्धकार दिखाया गया है वह अज्ञानान्धकार अथवा विषय-विकारों की रात्रि का घोतक है।

* ज्ञान-सूर्य शिव के प्रकट होने से सृष्टि से अज्ञानान्धकार तथा विकारों का नाश

जब इस प्रकार अवतरित होकर ज्ञान-सूर्य परमपिता परमात्मा शिव ज्ञान-प्रकाश देते है तो कुछ ही समय में ज्ञान का प्रभाव सारे विश्व में फ़ैल जाता है और कलियुग तथा तमोगुण के स्थान पर संसार में सतयुग और सतोगुण कि स्थापना हो जाती है और अज्ञान-अन्धकार का तथा विकारों का विनाश हो जाता है। सारे कल्प में परमपिता परमात्मा शिव के एक अलौकिक जन्म से थोड़े ही समय में यह सृष्टि वेश्यालय से बदल कर शिवालय बन जाती है और नर को श्री नारायण पद तथा नारी को श्री लक्ष्मी पद का प्राप्ति हो जाती है। इसलिए शिवरात्रि हीरे तुल्य है।

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