Saturday, 21 November 2015

गीता-ज्ञान हिंसक युद्ध करने के लिए नहीं दिया गया था

Bhagvat Geeta Hindi Story

hindi kahani, hindi stories, आज परमात्मा के दिव्य जन्म और "रथ" के स्वरुप को न जानने के कारण लोगो कि यह मान्यता दृढ़ है कि गीता-ज्ञान श्रीक्रष्ण ने अर्जुन के रथ एम् सवार होकर लड़ाई के मैदान में दिया आप ही सोचिये कि जबकि अहिंसा को धर्म का परम लक्षण माना गया है और जबकि धर्मात्मा अथवा महात्मा लोग नहो अहिंसा का पालन करते और अहिंसा की शिक्षा देते है तब क्या भगवान नव भला किसी हिंसक युद्ध के लिए किसी को शिक्षा दी होगी ? जबकि लौकिक पिता भी अपने बच्चो को यह शिक्षा देता है कि परस्पर न लड़ो तो क्या सृष्टि के परमपिता, शांति के सागर परमात्मा ने मनुष्यो को परस्पर लड़ाया होगा !

यह तो कदापि नहीं हो सकता भगवान तो देवी स्वभाव वाले संप्रदाय की तथा सर्वोत्तम धर्म की स्थापना के लिए ही गीता-ज्ञान देते है और उससे तो मनुष्य राग, द्वेष, हिंसा और क्रोध इत्यादि पर विजय प्राप्त करते है। अत: वास्तविकता यह है कि निराकार परमपिता परमात्मा शिव ने इस सृष्टि रूपी कर्मक्षेत्र अथवा कुरुक्षेत्र पर, प्रजापिता बह्मा ( अर्जुन) के शरीर रूपी रथ में सवार होकर माया अर्थात विकारो से ही युद्ध करने कि शिक्षा दी थी , परन्तु लेखक ने बाद में अलंकारिक भाषा में इसका वर्णन किया तथा चित्रकारों ने बाद में शरीर को रथ के रूप में अंकित करके प्रजापिता ब्रह्मा की आत्मा को भी उस रथ में एक मनुष्य ( अर्जुन) के रूप में चित्रित किया। बाद में वास्तविक रहस्य प्राय:लुप्त हो गया और स्थूल अर्थ ही प्रचलित हो गया।संगम युग में भगवान शिव ने जब प्रजापिता ब्रह्मा के तन रूपी रथ में अवतरित होकर ज्ञान दिया और धर्म की स्थापना की, तब उसके पश्चात् कलियुगी सृष्टि का महाविनाश हो गया और सतयुग स्थापन हुआ। 

अत: सर्व-महान परिवर्तन के कारण बाद में यह वास्तविक रहस्य प्रय्लुप्त हो गया। फिर जब द्वापरयुग के भक्तिकाल में गीता लिखी गयी तो बहुत पहले (संगमयुग में) हो चुके इस वृतांत का रूपांतरण व्यास ने वर्तमानकाल का प्रयोग करके किया तो समयांतर में गीता-ज्ञान को भी व्यास के जीवन-काल में, अर्थात " द्वापरयुग" में दिया गया ज्ञान मान लिया परन्तु इस भूल से संसार में बहुत बड़ी हानि हुई क्योंकि लोगो को यह रहस्य ठीक रीति से मालूम होता कि गीता-ज्ञान निराकार परमपिता परमात्मा शिव ने दिया जो कि श्रीकृष्ण के भी परलौकिक पिता है और सभी धर्मो के अनुयायियों के परम पूज्य तथा सबके एकमात्र सादगति दाता तथा राज्य-भग्य देने वाले है, तो सभी धर्मो के अनुयायी गीता को ही संसार का सर्वोत्तम शास्त्र मानते तथा उनके महावाक्यो को परमपिता के महावाक्य मानकर उनको शिरोधार्य करते और वे भारत को ही अपना सर्वोत्तम तीर्थ मानते अथ: शिव जयंती को गीता -जयंती तथा गीता जयंती को शिव जयंती के रूप में भी मानते। 

वे एक ज्योतिस्वरूप, निराकार परमपिता, परमात्मा शिव से ही योग-युक्त होकर पावन बन जाते तथा उससे सुख-शांति की पूर्ण विरासत ले लेते परन्तु आज उपर्युक्त सवोत्तम रहस्यों को न जानने के कारण और गीता माता के पति सर्व मान्य निराकार परमपिता शिव के स्थान पर गीता-पुत्र श्रीकृष्ण देवता का नाम लिख देने के कारण गीता का ही खंडन हो गया और संसार में घोर अनर्थ, हाहाकार तथा पापाचार हो गया है और लोग एक निराकार परमपिता की आज्ञा ( मन्मना भव अर्थात एक मुझ हो को याद करो ) को भूलकर व्यभिचारी बुद्धि वाले हो गए है ! ! आज फिर से उपर्युक्त रहस्य को जानकर परमपिता परमात्मा शिव से योग-युक्त होने से पुन: इस भारत में श्रीकृष्ण अथवा श्रीनारायण का सुखदायी स्वराज्य स्थापन हो सकता है और हो रहा है।

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