Tuesday, 10 November 2015

गुरु पूर्णिमा त्योहार


hindi interesting story

न  गुरु:  अधिकं  तत्त्वं
न  गुरु:  अधिकं  तप: |
न  गुरु:  अधिकं  ज्ञानं
तस्मै   श्रीगुरवे   नम: ||

 Gurupurnima Festival Story in Hindi

अर्थात् " गुरु से अच्छा कोई तत्व नहीं है, गुरु से अतिरिक्त तपस्या नहीं है, और गुरु से  विशेष कोई ज्ञान नहीं है ऐसे गुरुदेव को नमस्कार। हमारा भारत देश विश्व गुरु रूप का स्थान में शामिल है। यह गुरु पूजा एक भारतीय परंपरा है। ये समाज का पुर्नोत्थान और समाज के संरक्षण के लिए सबसे बड़ा योगदान है तो वो गुरु है। आज का हर छात्र भविष्य का नागरिक है । और उसको मजबूत करने का काम गुरु का है और वो इमारत को हिलने नहीं देते निचे की पंक्ति में ऐसा ही कोई गुरु के बारे में है।


बोना है बिज मुझे बच्चो के दिल के लिए
पेड़ हो कर बढ़ेंगे वो नाम जिज्ञासा देकर
ग्न्नानरूपी फल बाद में तो आएंगे पेड़ पर
शिखा देंगे सहज में जीने की जिन्दगी

गुरु के बिना का जीवन बिना पचाने के खाने की तरह है । पुराने महल भरा हुए कचरे को हटाने के लिए धैर्य ही जरुरी है, इतना ही धैर्य की आवश्यकता अध्ययन में भी है। और वो धैर्य देने वाला सिर्फ गुरु ही हो सकता है। इसलिए शिष्य गुरु को प्रार्थना करता है की

” मेरी  नैया  पर लगादो, गुरु ज्योत  से ज्योत  जगादो ।
काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह से गुरूजी हमको बचालो ।
सद्गुरुके  शुंगार  से, अब तो गुरूजी   हमको  सजालो । “

गुरु और शिष्य के बीच बहुत उज्ज्वल शक्ति है की सूरज की चमक भी उनसे मंद हो सकती है ! मनुष्य का शारीरिक विकास तो उसकी माँ करती है। लेकिन आदमी की अपना मानसिक और आध्यात्मिक विकास एक गुरु से प्राप्त होता है । गुरु तो गुरु का भी गुरु है। ऐसे इस परंपरा तो पर्व गुरु के समय की है। कहते है की 

पल पल जो कुछ नया सिखाये उसका नाम शिक्षा ।
जो दिल सिखाता है उसका नाम शिक्षक

अच्छे शिक्षक वही है जो कार्य करने से पहले सोचता है और कार्य करने के बाद भी समारोह करते है। गुरु शिष्य का ज्ञान पिता है। ज्ञान की भाषा में वो शिष्य को भी गुरु बना देते है। ज्ञान की इस नदी में नाव बनकर उसको किनारे तक पंहुचा देते है। जो व्यक्ति ‘सही रास्ता दिखाता है बही गुरु है फिर वो धार्मिक हो या ज्ञानि। एक कवि ने कहा है की 
जो  बात  दवा  से  हो  न  शके,
वो  बात  दुआ  से  होती हे,
काबिल  गुरु  जब  मिलता  हे,
तो  बात  खुदा  से  होती  हे । “

आदमी की सफलता के पीछे उसके गुरु का आशीर्वाद और प्रेरणा रहे होते हैं। मनुष्य के भीतर अव्यक्त ऊर्जा होती है। ये मानव को उर्जा से चमक बनने के लिए गुरु का सानिध्य जरुरी है। उदाहरण के लिए, देखे तो कोई शिल्पकार उसके कठिन प्रयासों से हीरा को पालिश करके चमक ला देता है वैसे ही गुरु एक अज्ञानी को बुद्धिमान शिष्य बना देता है। एक काले हीरे को पालिश करके इतना चमक देता है की हीरे को एक अँधेरे कमरे में रखो तो वो कमरे को भी प्रकाशीत कर देता है। गुरू द्वारा बनाया गया ये शिष्य दुनिया को एक नई चमक देता है। संतकबीर ने भी भावुक शब्दों में कहा है की 

सद्गुरु आपके चरण में आये गरीब और धनवान
लेकिन सबको आप एक ही मानो ऐसी आपकी शान

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