Realization By Yoga Hindi Stories
जो मनुष्य न आत्मा के स्वरूप को मानता है, न परमपिता परमात्मा की लगन में मग्न होता है, वह जीवन के सच्चे सुख है वन्धित और विकारों के प्रहारों से पीडित है। काम उसकी बुद्धि को चक्कर में डाल देता है, क्रोध उस पर अग्नि बस्साता है और अन्य विकार उस पर अपना फन्दा डालते है। परन्तु जब उस मनुष्य की बुद्धि परमपिता परमात्मा शिव की स्मृति में जुट जाती है तो इस कनेक्शन से, उस मनुष्य आत्मा मेँ लाइट और ज्ञाक्ति का प्रभाव बने बता है। वह स्वय में एक अपूर्व उल्लास और अनोखा हर्ष अनुभव करता है। उसे ऐसा बता है कि परमपिता परमात्मा द्वारा कोई गुप्त और असीम खजाना उसके हाथ लग गया है।
ईश्वरीय स्मृति द्वारा जो योगाग्नि प्रज्जवलित होती है, उसमें उसके सभी विकार दग्ध हो जाते है, वासनाएं मिट जाती है भी आत्मा एक दिव्य प्रकाश की अटूट धारा में सान करतीन्सी अनुभव करती है। उसे लता है कि अब वह एक ज्योति के समुद्र में नहा रही है अथवा वह स्वय एक ज्योतिमुँज है और परमात्मा का तेज उस पर उतरउतर कर संसार मेँ शान्ति और सात्विक क्या बिखेर रहा है। यदि वह इस मधुर अवस्था है अलग भी होता है तो भी उसे देह की खुलता का आभास नहीं होता, बल्कि वह स्वय को एक प्रकाशमय काया में कुछ पल के लिए ठहरा हुआ मुसाफिर अनुभव करता है।
इस प्रकार सहज राजयोग का पुरुषार्थ करने वाला नर अन्त में मुक्ति प्राप्त करके परमपिता शिव के शान्तिधाम में अथवा ज्योति-देश मेँ एक ज्योतिर्मय सितारे की तरह वास करता है फिर वह सतोप्रधान सतयुगी देव; सृष्टि में स्वर्गिक सुख और राज्यभाग्य प्राप्त करता है, जहॉ प्रकृति उसकी दासी होती है और पवित्रता, शान्ति, सुख तथा स्वास्थ्य उसके सेवक होते है।
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