Wednesday, 28 October 2015

Zindagi Shayari in Hindi Page-5

hindi Zindagi shayari, Zindagi sad shayari in hindi

Zindagi Shayari-1

हिजर के शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगे
सुनने वाले रात काटने के दुआ देने लगे
किस नज़र से आप ने देखा दिल-ए-मजरूह को
ज़ख़्म जो कुछ भर चले थे फिर हवा देने लगे
ज़ुज़ ज़मीन-ए-कू-ए-जनन कुछ नही पेश-ए-निगाह
जिस का दरवाज़ा नज़र आया सदा देने लगा
बागबाँ ने आग दी जब आशियाने को मेरे
जिन पे तकिया था वोही पत्ते हवा देने लगे
मुत्ठियों में खाक लेकर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ़्न
ज़िंदगी भर के मुहब्बत का सिला देने लगे
आईना हो जाए मेरा इश्क़ उन के हुस्न का
क्या मज़ा हो दर्द अगर खुद ही दवा देने लगे

Zindagi Shayari-2

मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समा बदल ना जाए
ना झूकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल ना जाए
मेरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबाल ना जाए
मेरा जम चूनेवाले तेरा हाथ जल ना जाए
अभी रात कुछ है बाक़ी ना उठा नक़ाब साक़ी
तेरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर संभाल ना जाए
मेरी ज़िंदगी के मलिक मेरे दिल पे हाथ रखना
तेरे आने के खुशी में मेरा दम निकल ना जाए
मुझे फूँकने से पहले मेरा दिल निकल लेना
ये किसी के है अमानत कहीं साथ जल ना जाए

Zindagi Shayari-3

अपने ख्वाबों में तुझे जिस ने भी देखा होगा
आँख खुलते ही तुझे ढूँढने निकाला होगा
ज़िंदगी सिर्फ़ तेरे नाम से मंसूब रहे
जाने कितने ही दिमाग़ों ने ये सोचा होगा
दोस्त हम उस को ही पैगाम-ए-करम समझेंगे
तेरी फुरक़त का जो जलता हुआ लम्हा होगा
दामन-ए-ज़िस्ट में अब कुछ भी नही है बाक़ी
मौत आई तो यक़ीनन
उसे धोका होगा
रोशनी जिस से उतार आई लहू में मेरे
आए मसीहा वो मेरा ज़ख़्म-ए-तमन्ना होगा

Zindagi Shayari-4

तेरी दुनिया में या रब ज़िस्ट के समान जलते हैं
फरेब-ए-ज़िंदगी के आग में इंसान जलते हैं
दिलों में आज़मत-ए-तौहीद के दीपक फसुरड़ा हैं
जबिनों पर रिया-ओ-कूबर के समान जलते हैं
हवस के बारयाबी है खिराद-मंदों के महफ़िल में
रुपहली टिकलियों के ओट में ईमान जलते हैं
हावदिस रक़स-फ़ार्मा हैं क़यामत मुस्कुराती है
सुना है नाखुदा के नाम से तूफान जलते हैं
शगूफे झूलते हैं इस चमन में भूक के झूले
बहारों में नशेमान तो बाहर-ए-ुनवान जलताए हैं
कहीं आज़ेब के छान-छान में मजबूरी तड़पति है
रिया दम तोड़ देती है सुनहरे दान जलते हैं
मनाओ जश्न-ए-मे-नोशी बिखराव ज़ुलफ-ए-मयखाना
इबादत से तो “सागर” दहर के शैतान जलते हैं

Zindagi Shayari-5

कों कहता है मोहब्बत के ज़ुबान होती है
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयान होती है
वो ना आए तो सताती है खलिश सी दिल को
वो जो आए तो खलिश और जवान होती है
रूह को शाद करे दिल को जो पुरनूर करे
हर नज़ारे में ये तनवीर कहाँ होती है
ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मोहब्बत को कहाँ तक रोके
दिल में जो बात हो आँखों से अयान होती है
ज़िंदगी एक सुलगती सी चीता है “साहिर”
शोला बनती है ना ये भुज के धुआँ होती है

Zindagi Shayari-6

तेरी महफ़िल से उठाकर इश्क़ के मारों पे क्या गुज़री
मुखालिफ़ इक जहाँ था जाने बेचारों पे क्या गुज़री
सहर को रुखसत-ए-बीमार-ए-फुरक़त देखने वालो
किसी ने ये भी देखा रात भर तारों पे क्या गुज़री
सुना है ज़िंदगी वीरनियों ने लूट ली मिलकर
ना जाने ज़िंदगी के नज़्बारदारों पे क्या गुज़री
हँसी आई तो है बेकैफ़ सी लेकिन खुदा जाने
मुझे मसरूर पाकर मेरे गांखवारों पे क्या गुज़री
असीर-ए-गम तो जान देकर रिहाई पा गया लेकिन
किसी को क्या खबर ज़िंदन के दीवारों पे क्या गुज़री

Zindagi Shayari-7

तर्ज़ जीने का सिखाती है मुझे
तश्नगी ज़हेर पिलाती है मुझे
रात भर रहती है किस बात के धुन
ना जागती है ना सुलाती है मुझे
रठता हूँ जो कभी दुनिया से
ज़िंदगी आके मानती है मुझे
आईना देखूं तो क्यूंकर देखूं
याद इक शख्स के आती है मुझे
बंद करता हूँ जो आँखें क्या क्या
रोशनी सी नज़र आती है मुझे
कोई मिल जाए तो रास्ता काट जाए
अपनी परछाई डरती है मुझे
अब तो ये भूल गया किस के तलब
देस परदेस फिरती है मुझे
कैसे हो ख़त्म कहानी घाम के
अब तो कुछ नींद सी आती है मुझे

Zindagi Shayari-8

इक तुम के दिल में दर्द किसी गैर के लिए
इक हम के दर्द बन गये खुद आप के लिए
हम अपने आशियाने में तेरे मुंतज़ीर
तुम तिनके चुन रहे थे किसी और के लिए
हम जानते हैं दिल में तुम्हारे नही हैं हम
जो खत तुम्हारी आँखों में थे हम ने पढ़ लिए
घाम है के तू ने लूट लिया आइटमद को
इक दाग दे दिए हैं हमें उम्र के लिए
क़ातिल के इस अदा पे भी क़ुरबान जाए
खुद दे के ज़हेर आँखों में आँसू भी भर लिए
थी कों सी ख़ाता के मिली जिस के ये सज़ा
हम ने तो उम्र भर तेरे निकास-ए-क़दम लिए
“आज़्रा” ये माना बोझ है अब तुझ पे ज़िंदगी
पर ज़िंदगी तो तेरी नही है तेरे लिए

Zindagi Shayari-9

हर बेज़बान को शोलनवा कह लिया करो
यारो सुकुट ही को सदा कह लिया करो
खुद को फरेब दो की ना हो तल्ख़ ज़िंदगी
हर संगदिल को जाने-ए-वफ़ा कह लिया करो
गर चाहते हो खुश रहें कुछ बंदगान-ए-खास
जीतने सनम हैं उन को खुदा कह लिया करो
इंसान का अगर क़द-ओ-क़ामत ना बढ़ सके
तुम इस को नुक़स-ए-अब-ओ-हवा कह लिया करो
अपने लिए अब एक ही रह-ए-निजात है
हर ज़ुल्म को रज़ा-ए-खुदा कह लिया करो
ले दे के अब यही है निशान-ए-ज़िया “क़तील”
जब दिल जले तो उस को दिया कह लिया करो

Zindagi Shayari-10

ये जो ज़िंदगी के किताब है ये किताब भी क्या किताब है
कहीं इक हसीन सा ख्वाब है कहीं जान-लेवा अज़ाब है
कहीं छाँव है कहीं धूप है कहीं और ही कोई रूप है
कई चेहरे इस में छुपे हुए इक अजीब सी ये नक़ाब है
कहीं खो दिया कहीं पा लिया कहीं रो लिया कहीं गा लिया
कहीं चीन लेती है हर खुशी कहीं मेहरबान बेहिसाब है
कहीं आँसुओं के है दास्तान कहीं मुस्कुराहतों का बयान
कहीं बरक़तों के है बारिशें कहीं टिशनगी बेहिसाब है

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