Zindagi Shayari-1
आँखों में बस के दिल में समा कर चले गये
ख्वाबिदा ज़िंदगी थी जगा कर चले गये
चेहरे तक आस्तीन वो लाकर चले गये
क्या राज़ था की जिस को छिपाकर चले गये
राग राग में इस तरह वो समा कर चले गये
जैसे मुझ ही को मुझसे चुराकर चले गये
आए थे दिल के प्यास बुझाने के वास्ते
इक आग सी वो और लगा कर चले गये
लब तर-तारा के रह गये लेकिन वो आए “जिगर”
जाते हुए निगाह मिलकर चले गये
Zindagi Shayari-2
ज़िंदगी ABCD है
A= ऐतबार
B= भरोसा
C= चाहत
D= दोस्ती
E= एनआयत
F= फेसला
G= गुम
H= हम्डम
I= इंतजार
J= जसबत
K= किस्मत
L= लम्हे
M= मोहब्बत
N= नाराज़गी
O= ओर
P= प्यार
Q= क़ुर्बानी
R= रिस्ते
S= समझोता
T= तन्हाई
U= उमीद
V= वीरनिया
W= वादा
X= क्षकुसे
Y= यादें
ओर इन सूब फीलिंग से मिलकर बनती है..
Z= ज़िंदगी
Zindagi Shayari-3
ज़ख़्म जो आप के इनायत है इस निशानी को क्या नाम दे हम
प्यार दीवार बन के रह गया है इस कहानी को क्या नाम दे हम
आप इल्ज़ाम धार गये हम पर एक एहसान कर गये हम पर
आप के ये मेहरबानी है मेहरबानी को क्या नाम दे हम
आप को यूँ ही ज़िंदगी समझा धूप को हम ने चाँदनी समझा
भूल ही भूल जिस के आदत है इक जवानी को नाम क्या दे हम
रात सपना बाहर का देखा दिन हुआ तो गुबार सा देखा
बेवफा वक़्त बेज़ुबान निकाला बेज़ुबानी को नाम क्या दे हम
Zindagi Shayari-4
सागर से लब लगा के बहुत खुश है ज़िंदगी
सहन-ए-चमन में आके बहुत खुश है ज़िंदगी
आ जाओ और भी ज़रा नज़दीक जान-ए-मान
तुम को क़रीब पके बहुत खुश है ज़िंदगी
होता कोई महल भी तो क्या पूछते हो फिर
बे-वजह मुस्कुरा के बहुत खुश है ज़िंदगी
साहिल पे भी तो इतनी शगूफता रविश ना थी
तूफान के बीच आके बहुत खुश है ज़िंदगी
वीरान दिल है और “आदम” ज़िंदगी का रक़स
जंगल में घर बनके बहुत खुश है ज़िंदगी
Zindagi Shayari-5
आँसुओं के जहाँ पयमलि रही
ऐसी बस्ती चरगों से खाली रही
दुश्मनों के तरह उस से लड़ते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही
जब कभी भी तुम्हारा ख़याल आ गया
फिर कई रोज़ तक बेखायाली रही
लब तरसते रहे इक हँसी के लिए
मेरी कश्ती मुसाफिर से खाली रही
चाँद तारे सभी हम-सफ़र थे मगर
ज़िंदगी रात थी रात काली रही
मेरे सिने पे खुश्बू ने सर रख दिया
मेरी बाँहों में पुलों के डाली रही
Zindagi Shayari-6
हर दम दुआएँ देना हर लम्हा आहें भरना
इन का भी कम करना अपना भी कम करना
यान किस को है मययासर ये कम कर गुज़रना
एक बनकपन पे जीना एक बनकपन पे मारना
जो ज़िस्ट को ना समझे जो मौत को ना जाने
जीना उन्हीं का जीना मारना उन्हीं का मारना
हरियाली ज़िंदगी पे सदाक़े हज़ार जाने
मुझको नही गवारा साहिल के मौत मारना
रंगिनियाँ नही तो रनईयाँ भी कैसी
शबनम सी नज़निन को आता नही संवारना
तेरी इनायतों से मुझको भी आ चला है
तेरी हिमायतों में हर-हर क़दम गुज़रना
कुछ आ चली है आहत इस पायणाज़ के सी
तुझ पर खुदा के रहमत आए दिल ज़रा ठहराना
खून-ए-जिगर का हासिल इक शेर तक के सूरत
अपना ही अक्स जिस में अपना ही रंग भरना
Zindagi Shayari-7
माल-ए-सोज़-ए-गम हाए! निहानी देखते जाओ
भड़क उठी है शम्मा-ए-ज़िंदगानी देखते जाओ
चले भी आओ वो है क़ब्र-ए-फणी देखते जाओ
तुम अपने मरने वेल के निशानी देखते जाओ
अभी क्या है किसी दिन खून रुलाएगा ये खामोशी
ज़ुबान-ए-हाल की जद्द-ओ-बयानी देखते जाओ
गरूर-ए-हुस्न का सदक़ा कोई जाता है दुनिया से
किसी के खाक में मिलती जवानी देखते जाओ
उधर मूह फेर कर क्या ज़ीबाह करते हो, इधर देखो!
मेरी गर्दन पे खंजर के रवानी देखते जाओ
बाहर-ए-ज़िंदगी का लुत्फ़ देखा है और देखोगे
किसी का ऐश मार्ग-ए-नगाहनी देखते जाओ
सुने जाते ना थे तुम से मेरे दिन रात के शिकवे
कफ़न सराकाओ मेरी बे-ज़ुबानी देखते जाओ
वो उठा शोर-ए-मातम आखरी दीदार-ए-मय्यत पर
अब उठा चाहते हैं नाश-ए-फणी देखते जाओ
Zindagi Shayari-8
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नही खाते बस्तियाँ जलने में
और जाम टूटेंगे इस शराब-खाने में
मौसमों के आने में मौसमों के जाने में
हर धड़कते पठार को लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में
फाख्ता के मजबूरी ये भी कह नही सकती
कों साँप रखता है उसके आशियाने में
दूसरी कोई लड़की ज़िंदगी में आएगी
कितनी देर लगती है उसको भूल जाने में
Zindagi Shayari-9
कभी मुझ को साथ लेकर, कभी मेरे साथ चल कर
वो बदल गये अचानक मेरी ज़िंदगी बदल कर
हुए जिस पे मेहरबान तुम कोई खुशनसीब होगा
मेरी हसरतें तो निकलीं मेरे आँसुओं में ढाल के
तेरी ज़ुलफ-ओ-रुख़ के क़ुरबान दिल-ए-ज़र ढूंढता है
वोही चांपाई उजाले वोही सुरमई ढुंदलाके
कोई फूल बन गया है कोई चाँद कोई तारा
जो चिराग बुझ गये हैं तेरी अंजुमन में जल के
मेरे दोस्तो खुदरा मेरे साथ तुम भी ढुणडो
वो यहीं कहीं छुपे हैं मेरे घाम का रुख़ बदल के
तेरी बेझिझक हँसी से ना किसी का दिल हो मैला
ये नगर है आईनों का यहाँ सांस ले संभाल के
Zindagi Shayari-10
ज़िंदगी के हर मोर पर
हम ने धोका खा रखा है
लूग समझते हैं
हम ने दुनिया को हंसा रखा है
लायकेन इन को काइया मालूम!!
कह हम ने
अपने घर के ऐक कमरे में
ऐक छूटा सा अपनी हसरातों का
क़ब्रिस्तान बना रखा है
मौत भी करती है हम से बे वफ़ए
और घूमों ने हूमें
सनम खाना बना रखा है
लूगो की नज़रो में हम ने
अपने लबों पर
मजमूआ-ए-आशर सज़ा रखा है
लायकेन इन को काइया मालूम!!!
हम ने घूम और दुखू का
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