Biography of Iron man Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi
भारत के प्रथम गृह मंत्री और प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को हम लौह पुरुष के नाम से भी जानते हैं। उनके द्वारा किए गए साहसिक कार्यों की वजह से ही उन्हें लौह पुरुष और सरदार जैसे उपाधियों से नवाजा गया। आज हम जिस, कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैले विशाल भारत को देख पाते हैं उसकी कल्पना सरदार वल्लभ भाई पटेल के बिना शायद पूरी नहीं हो पाती, उन्होंने ही देश के छोटे-छोटे रजवाड़ों और राजघरानों को एक कर भारत में सम्मिलित किया।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय एकता की जब भी बात होती है तो सरदार पटेल का नाम सबसे पहले ध्यान में आता है, उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति, नेतृत्व कौशल और अदम्य साहस का ही कमाल था कि 600 देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय हो सका। बिस्मार्क ने जिस तरह जर्मनी के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उसी तरह वल्लभ भाई पटेल ने भी आजाद भारत को एक विशाल राष्ट्र बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। बिस्मार्क को जहां जर्मनी का ‘आयरन चांसलर’ कहा जाता है वहीं पटेल भारत के लौह पुरुष कहलाते हैं।
वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड में उनके ननिहाल में हुआ। वह खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई पटेल और लाडबा पटेल की चौथी संतान थे। बचपन से ही उनके परिवार ने उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। हालांकि 16 साल की उम्र में ही उनका विवाह कर दिया गया था पर उन्होंने अपने विवाह को अपनी पढ़ाई के रास्ते में नहीं आने दिया और 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और ज़िला अधिवक्ता की परीक्षा में भी उत्तीर्ण हुए, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली।
अपनी वकालत के दौरान उन्होंने कई बार ऐसे केस लड़े जिसे दूसरे निरस और हारा हुआ मानते थे। उनकी प्रभावशाली वकालत का ही कमाल था कि उनकी प्रसिद्धी दिनों-दिन बढ़ती चली गई।गम्भीर और शालीन पटेल अपने उच्चस्तरीय तौर-तरीक़ों और चुस्त अंग्रेज़ी पहनावे के लिए भी जाने जाते थे, लेकिन गांधीजी के प्रभाव में आने के बाद उनके जीवन की राह ही बदल गई। 1917 में मोहनदास करमचन्द गांधी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने ब्रिटिश राज की नीतियों के विरोध में अहिंसक और नागरिक अवज्ञा आंदोलन के जरिए खेड़ा, बरसाड़ और बारदोली के किसानों को एकत्र किया।
अपने इस काम की वजह से देखते ही देखते वह गुजरात के प्रभावशाली नेताओं की श्रेणी में शामिल हो गए। जन कल्याण और आजादी के लिए चलाए जाने वाले आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के चलते उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में महत्वपूर्ण स्थान मिल गया। गुजरात के बारदोली ताल्लुका के लोगों ने उन्हें ‘सरदार’ नाम दिया और इस तरह वे सरदार वल्लभ भाई पटेल कहलाने लगे। सन 1947 में भारत को आजादी तो मिल गयी थी लेकिन इसके बावजूद देश के सामने चुनौती थी अपनी छोटी-छोटी रियासतों को एक करने की जिससे एक अखंड व् विशाल भारतवर्ष का सपना साकार हो पाता। ऐसे में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रियासतों के प्रति नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘रियासतों को तीन विषयों – सुरक्षा, विदेश तथा संचार व्यवस्था के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जाएगा।
सरदार पटेल ने आज़ादी के ठीक पूर्व ही पी।वी। मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हें स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी रजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।15 अगस्त, 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें ‘भारत संघ’ में सम्मिलित हो गईं। जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया।
जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। गृहमंत्री बनने के बाद भारतीय रियासतों के विलय की ज़िम्मेदारी उन्हें ही सौंपी गई। उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए छह सौ छोटी बड़ी रियासतों का भारत में विलय कराया। 15 दिसंबर, 1950 को सरदार पटेल इस दुनिया को अलविदा कह गए। भारत देश को आज ऐसे ही लौह पुरुष की तलाश है जो देश में एकता और अखंडता लाने में फिर से सफल हो सके।
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