Honesty are best policy Hindi Story

ईमानदारी हिंदी कहानी Hindi Story About Honesty
एक मितेश नाम का व्यक्ति था। स्वभाव से बहुत ही गंभीर था। उसकी पढाई पूरी हो चुकी थी लेकिन कोई नौकरी नहीं थी। दिन रात वो काम की तलाश में इधर – उधर भटकता रहता था। मितेश एक ईमानदार मनुष्य भी था इसलिये भी उसे काम मिलने में मुश्किल आ रही थी। दिन इतने ख़राब हो चुके थे कि उसे मजदूरी करनी पड़ी। रोजी रोटी के लिए उसके पास अब कोई विकल्प नहीं था। मितेश पढ़ा लिखा था जो उसके व्यवहार से साफ जाहिर होता था।
एक दिन एक शेठ के घर मितेश मजदूरी कर रहा था। शेठ का ध्यान मितेश के उपर ही था। शेठ को समझ आ रहा था कि मितेश एक पढ़ा लिखा समझदार लड़का हैं लेकिन परिस्थती वश उसे ऐसे मजदूरी के काम करना पड़ रहा हैं। शेठ को अपने एक विशेष काम के लिए एक ईमानदार व्यक्ति की जरुरत थी। उसने मितेश की परीक्षा लेने की सोची।
उसने एक दिन मितेश को अपने पास बुलाया और उसे पचास हजार रूपये दिए जिसमे सो-सो के नोट थे और कहा भाई तुम ईमानदार लगते हो ये पैसे मेरे एक व्यापारी को दे आओ। मितेश ने ईमानदारी से पैसे पहुँचा दिए। दुसरे दिन, व्यापारी ने मितेश को फिर से पैसे दिए इस बार उसने मितेश को बिना गिने पैसे दिए कहा खुद ही गिन लो और व्यापारी को दे आओ। मितेश ने ईमानदारी से काम किया।
शेठ पहले से ही गल्ले में पैसे गिनकर रखता था पर वो मितेश की ईमानदारी की परीक्षा लेना चाहता था। रोज वो शेठ उसे पैसे देने भेजता था। मितेश की माली हालत तो बहुत ही ख़राब थी। एक दिन उसकी नियत डोल गयी और उसने सो रूपये चुरा लिए। जिसका पता शेठ को लग गया पर शेठ ने कुछ नहीं कहा। फिर से मितेश को रूपये देने भेजा। शेठ के कुछ न कहने पर मितेश की हिम्मत बढ़ गयी। उसने रोजाना चोरी शुरू कर दिया।
शेठ को उम्मीद थी कि मितेश उसे सच बोलेगा लेकिन मितेश ने नहीं बोला। एक दिन शेठ ने मितेश को काम से निकाल दिया। वास्तव में शेठ अपने जीवन का एक सहारा ढूंढ रहा था। उसकी कोई संतान नहीं थी। मितेश को भोला भाला जानकर उसने उसकी परीक्षा लेने की सोची थी। अगर मितेश सच बोलता तो शेठ उसे अपनी दुकान सौप देता। जब मितेश को इस बात का पता चला हैं तो उसे बहुत दुःख हुआ और उसके स्वीकारा कि कैसी भी परिस्थती हो ईमानदारी ही सर्वोच्च नीति होती हैं।
दोस्तों कैसा भी मुकाम आये व्यक्ति को ईमानदारी का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। ईमानदारी जीवन की वो कमाई हैं जो मुश्किल हैं लेकिन कभी गलत अंत नहीं देती। बेईमानी की रीति नीति स्वीकार करने का प्रतिफल अपने लिए विपत्ति और समाज के लिए दुर्गति के रूप में ही प्रस्तुत होगा। हमें इस कंटकाकीर्ण पगडंडी पर चलने की अपेक्षा ईमानदारी के राजमार्ग पर ही चलना चाहिये। बेईमानी के दुष्परिणामों के अनुभव के आधार पर जानने की अपेक्षा यही अच्छा है किस मार्ग पर चलने वालों की दुर्गति देखे और उतने से ही सावधानी बरतने लग जाएँ। इतिहास के किसी भी पृष्ठ पर यह तथ्य देखा जा सकता है कि विभूतियों और सम्पत्तियों का लाभ केवल उनके लिए सुरक्षित रहा है, जो सद्गुणी, चरित्रवान और ईमानदार है।
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