Monday, 26 October 2015

Zindagi Shayari in Hindi Page-1

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Zindagi Shayari-1

ये क्या जगह है दोस्तो ये कॉन सा दायर है
हद्द-ए-निगाह तक जहाँ गुबार ही गुबार है
ये किस मुकाम पर हयात मुझ को लेके आ गई
ना बस खुशी पे है जहाँ ना घम पे इकतियार है
तमाम उम्र का हिसाब मांगती है ज़िंदगी
ये मेरा दिल कहे तो क्या ये खुद से शर्मसार है
बुला रहा क्या कोई चिलमानॉन के उस तरफ
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेक़रार है
ना जिस के शक्ल है कोई ना जिस का नाम है कोई
इक ऐसी शाइ का क्यों हमें आज़ल से इंतज़ार है

Zindagi Shayari-2

कैसा चलन है गर्दिश-ए-लेल-ओ-नहर का
शिकवा हर एक को है गम-ए-रोज़गार का
टूटी जो आस जल गये पलकों पे सौ चिराग
निखारा कुछ और रंग शब-ए-इंतज़ार का
इस ज़िंदगी ई हम से हक़ीक़त ना पूछिए
इक जबर जिस को नाम दिया इकतियार का
ये कों आ गया मेरी बाज़म-ए-ख़याल में
पूछा मिज़ाज किस ने दिल-ए-सोगावार का
देखो फिर आज हो ना जाए कहीं खून-ए-आइटमद
देखो ना टूट जाए फुसून ऐतबार का

Zindagi Shayari-3

हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना ना कहो
ये ज़िंदगी तो है रहमत इसे सज़ा ना कहो
ना जाने कों सी मजबूरियों का क़ैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफा ना कहो
तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यू उछाला मुझे
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इस को हादसा ना कहो
ये और बात के दुश्मन हुआ है आज मगर
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा ना कहो
हमारे ऐब हमें उंगलियों पे गिन्वओ
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा ना कहो
मैं वक़ीयत के ज़ंजीर का नही क़ायल
मुझे भी अपने गुनाहों का सिलसिला ना कहो
ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी है “रहट”
हर एक तराशे हुए बुत को देवता ना कहो.

Zindagi Shayari-4

इतना तो ज़िंदगी में किसी के खलल पड़े
हँसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े
जिस तरह हंस रहा हूँ मैं पी-पी के अश्क-ए-गम
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े
एक तुम के तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ है
एक हम के चल पड़े तो बहरहाल चल पड़े
मुद्दत के बाद उस ने जो के लुत्फ़ के निगाह
जी खुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े
साक़ी सभी को है गम-ए-तश्नलाबी मगर
मे है उसी के नाम पे जिस के उबाल पड़े

Zindagi Shayari-5

तेरे पास आने को जी चाहता है
नये ज़ख़्म खाने को जी चाहता है
इधर आए शायद वो मौज-ए-तरन्नुम
ग़ज़ल गुनगुनाने को जी चाहता है
ज़माना मेरा आज़माया हुआ है
तुझे आज़माने को जी चाहता है
वोही बात रह रह के याद आ रही है
जिसे भूल जाने को जी चाहता है
लबों पर मेरे खेलता है तबस्सुम
जब आँसू बहाने को जी चाहता है
कई मर्तबा दिल पे बिजली गिरी है
मगर मुस्कुराने को जी चाहता है
तकल्लूफ ना कर आज बर्क़-ए-तजल्ली
नशेमान जलने को जी चाहता है
रुख़-ए-ज़िंदगी से नक़बेन उलट कर
हक़ीक़त दिखाने को जी चाहता है

Zindagi Shayari-6

वो अंजुमन में रात बड़ी शान से गये
ईमान चीज़ क्या थी कई जान से गये
मैं तो छुपा हुआ था हज़ारों नक़ाब में
लेकिन अकेले देख के पहचान से गये
वो शमा बन के खुद ही अकेले जला किया
परवाने कल के रात परेशन से गये
आया तेरा सलाम ना आया है खत कोई
हम आख़िरी सफ़र के भी समान से गये
“रही” जिन्हें खुदा भी ना समझा सका कभी
बैठे बिताए देख लो अब मान से गये

Zindagi Shayari-7

हिजर के शब है और उजाला है
क्या तसवउर भी लूटने वाला है
घाम तो है आईं ज़िंदगी लेकिन
गांगुसरों ने मार डाला है
इश्क़ मजबूर-ओ-नामुराद सही
फिर भी ज़ालिम का बोलबाला है
देख कर बर्क़ के परेशानी
आशियाँ खुद ही फूँक डाला है
कितने अश्कों को कितनी आहों को
इक तबस्सुम में उस ने ढाला है
तेरी बातों को मैं ने आए वाइज़
अहटरामा हँसी में टला है
मौत आए तो दिन फिरे शायद
ज़िंदगी ने तो मार डाला है
शेर नाज़्में शगुफतागी मस्ती
घाम का जो रूप है निराला है
लाग्ज़िशें मुस्कुरई हैं क्या क्या
होश ने जब मुझे संभाला है
दम अंधेरे में घुट रहा है खुमार
और चारों तरफ उजाला है

Zindagi Shayari-8

वो नही मिलता मुझे इस का गीला अपनी जगह
उस के मेरे दरमियाँ का फासला अपनी जगह
दिल की मौसम के निखारने के लिए बेचैन है
जाम गई है उन के होठों के घटा अपनी जगह
ज़िंदगी के इस सफ़र में सैंकड़ों चेहरे मिले
दिल-काशी उन के अलग पैकर तेरा अपनी जगह
तुझ से मिल कर आने वाले कल से नफ़रत मोल ली
अब कभी तुझ से ना बिचदुन ये दुआ अपनी जगह
कर कभी तू मेरे दिल के ख्वाहिशों का एहतरम
ख्वाहिशों के भीड़ और उन के सज़ा अपनी जगह
इक मुसलसल दौड़ में है मंज़िलें और फ़ासले
पाँव तो अपनी जगह हैं रास्ता अपनी जगह

Zindagi Shayari-9

लम्हों के आज़ाब सह रहा हूँ
मैं अपने वजूद के सज़ा हूँ
ज़ख़्मों के गुलाब खिल रहे हैं
खुश्बू के हुजूम में खड़ा हूँ
इस दश्त-ए-तलब में इक मैं भी
सदियों के ताकि हुई सदा हूँ
बेनाम-ओ-नुमूद ज़िंदगी का
इक बोझा उठाए फिर रहा हूँ
इक ऐसा चमन है जिस के खुश्बू
साँसों में बसाए फिर रहा हूँ
इक ऐसी ज़मीन है जिस को छूकर
तकदिस-ए-हराम से आशना हूँ
आए मुझ को फरेब देने वाले
मैं तुझ पर यक़ीन कर चुका हूँ
मैं तेरे क़रीब आते आते
कुछ और भी दूर हो गया हूँ

Zindagi Shayari-10

मेरे आँसुओं पे नज़र ना कर मेरा शिकवा सुन के खफा ना हो
उसे ज़िंदगी का भी हक़ नही जिसे दर्द-ए-इश्क़ मिला ना हो
ये इनायातें ये नवाज़िशें मेरे दर्द-ए-दिल के डॉवा नही
मुझे उस नज़र के तलाश है जो अदा शनस-ए-वफ़ा ना हो
तुझे क्या बतौन मैं बेख़बर की है दर्द-ए-इश्क़ में क्या असर
ये है वो लतीफ सी कैफियत जो ज़ुबान तक आए अदा ना हो
ये शराब रेज़-ए-हसीन घटा जो है “कैफ़” नज़िश-ए-मायकड़ा
किसी तश्ना-कम के आरज़ू किसी तश्ना-लब के दुआ ना हो

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