Zindagi Shayari-1
थरतरी सी है आसमानों में
ज़ोर कुछ तो है नटवानों में
कितना खामोश है जहाँ लेकिन
इक सदा आ रही है कानों में
कोई सोचे तो फ़र्क़ कितना है
हुस्न और इश्क़ के फसानों में
मौत के भी उड़े हैं अक्सर होश
ज़िंदगी के शराबखानों में
जिन के तामिर इश्क़ करता है
कों रहता है उन मकानों में
इन्हीं तिनाकों में देख आए बुलबुल
बिजलियाँ भी हैं आशियनों में
Zindagi Shayari-2
कभी आ लब पे मचल गई कभी अश्क आँख से ढाल गये
वो तुम्हारे घाम के चिराग हैं कभी बुझ गये कभी जल गये
मैं ख़याल-ओ-ख्वाब के महफिलें ना बक़द्र-ए-शौक़ सज़ा सका
तुम्हारी इक नज़र के साथ ही मेरे सब इरादे बदल गये
कभी रंग में कभी रूप में कभी छाँव में कभी धूप में
कहीं आफताब-ए-नज़र हैं वो कहीं माहताब में ढाल गये
जो फ़ना हुए गम-ए-इश्क़ में उन्हें ज़िंदगी का ना घाम हुआ
जो ना अपनी आग में जल सके वो पराई आग में जल गये
या उन्हें भी मेरी तरह जुनून तो फिर उन में उँझ में ये फ़र्क़ क्या
मैं गिरफ़्त-ए-गम से ना बच सका वो हुदूद-ए-गम से निकल गये
Zindagi Shayari-3
तोड़ कर उठे हैं जाम-ओ-शीशा-ओ-पैमाना हम
किस से कह दें आज राज़-ए-गर्दिश-ए-मस्ताना हम
बिजलियाँ रूपोश तूफान दम बखुद सहारा खामोश
जा रहे हैं किस तरफ आए लाग्ज़िश-ए-मस्ताना हम
ज़िंदगी इक मुस्तक़िल शरह-ए-तमन्ना थी मगर
उम्र भर तेरी तमन्ना से रहे बेगाना हम
तुझ में भी कुछ होश-माँडना अदाएँ आ गईं
तुझ से भी अब बदगुमान हैं आए दिल-ए-दीवाना हम
खुश्क आँखें दिल शिकसता रूह तन्हा लब खामोश
बस्तियों से देखते हैं सूरत-ए-वीराना हम
हम तक अब आए ना आए दौर-ए-पैमाना “रविश”
मुतमैन बैठे हैं ज़ेर-ए-साया-ए-मैखना हम
Zindagi Shayari-4
हर एक रूह में एक घाम छुपा लगे है मुझे
ये ज़िंदगी तो कोई बाद-दुआ लगे है मुझे
जो आँसू में कभी रात भीग जाती है
बहुत क़रीब वो आवाज़-ए-पा लगे है मुझे
मैं सो भी जौन तो मेरी बंद आँखों में
तमाम रात कोई झाँकता लगे है मुझे
मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ
वो खुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे
मैं सोचता था की लौटूँगा अजनबी के तरह
ये मेरा गाओं तो पहचाना सा लगे है मुझे
बिखर गया है कुछ इस तरह आदमी का वजूद
हर एक फर्ड कोई सनेहा लगे है मुझे
Zindagi Shayari-5
बहुत मिला ना मिला ज़िंदगी से गम क्या है
माता-ए-दर्द बहम है तो बेश-ओ-कम क्या है
हम एक उम्र से वाक़िफ़ हैं अब ना समझाओ
के लुत्फ़ क्या है मेरे मेहरबान सितम क्या है
करे ना जाग मई अलाव तो शेर किस मक़सद
करे ना शहर मई जल-तल तो चश्म-ए-नाम क्या है
अजाल के हाथ कोई आ रहा है परवाना
ना जाने आज के फेहरिस्त मई रक़म क्या है
सजाओ बाज़म ग़ज़ल गाओ जाम ताज़ा करो
बहुत सही गम-ए-गेटी शराब कम क्या है
लिहाज़ मई कोई कुछ दूर साथ चलता है
वागरना दहर मई अब खीज़र का भरम क्या है.
Zindagi Shayari-6
मेरी ज़िंदगी ही मुझे अज़ाब लगे,
आँख मे अश्कों का सैलाब लगे.
तेरे हुस्न का सनी दुनिया मे नही कोई,
चेहरा तेरा मुझे खिलता गुलाब लगे.
क्या ज़रूरत है तुम्हे पर्दे की,
तेरे क़ेसू ही सनम तेरा नक़ाब लगे.
क्यों तोड़ें तेरी कसमों को महखाने जाकर,
जब इन आँखों के ाश्क़ ही मुझे शराब लगे.
क्या खबर तेरी इनयतें हैं कितनी मुझपर,
ज़ख़्मो को गिनू तो कुछ हिसाब लगे.
यून तो कई रूप सजे थे राहों मे,
देखा तो हर शख्स मे जनाब लगे
Zindagi Shayari-7
किताबो क पन्ने पलट के सोचते है,
या पलट जाए ज़िंदगी तो क्या बात है,
तामाना जो पूरी हो खाबों मई
हक़ीक़त बन जाए तो क्या बात है,
कुछ लोग मतलब क लिए डुनधते है मुझे,
बिन मतलब क लिए कोई आए तो क्या बात है,
कटाल करके तो सब ले जाएँगे दिल मेरा,
कोई बातो से ले जाए तो क्या बात है
जो श्रीफो की शराफ़त मई बात ना हो
1 शराबी कह जाए तो क्या बात है ,
ज़िंदा र्हेने तक तो खुशी दूँगी सबको,
किसिको मेरी मौत पे खुशी मिल जाए तो क्या बात है
Zindagi Shayari-8
क्या हुआ तेरा हर इक रोज़ मुझे खत लिखना
और खत में दिल-ए-बेताब के हालत लिखना
मेरी खातिर शब-ए-फुरक़त में ना सोना तेरा
मेरी यादों में परेशन सा होना तेरा
और फिर खत में शब-ए-हिजर के बाबत लिखना
क्या हुआ तेरा हर इक रोज़ मुझे खत लिखना
वो सर-ए-शाम ख़यालों में मेरे खो जाना
और फिर खुद ही तेरा शर्मसार हो जाना
वो अकेले में मुझे प्यार भरा खत लिखना
क्या हुआ तेरा हर इक रोज़ मुझे खत लिखना
किस लिए तोड़ दिए तूने सभी अहद-ए-वफ़ा
क्या हुए वेड मुहब्बत के बता कुछ तो बता
किस लिए छोड़ दिया तू ने मुझे खत लिखना
क्या हुआ तेरा हर इक रोज़ मुझे खत लिखना
Zindagi Shayari-9
ज़िंदगी जैसी तमन्ना थी नही कुछ कम है
हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है
घर के तामिर तसवउर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीन कुछ कम है
बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उमीद तो काफ़ी है यक़ीन कुछ कम है
अब जिधर देखिए लगता है की इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम
आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
ये अलग बात की पहली सी नही कुछ कम है
Zindagi Shayari-10
लब पे पाबंदी नही एहसास पे पहरा तो है
फिर भी अहल-ए-दिल को आहवाल-ए-बशर कहना तो है
अपनी गैरत बेच डालें अपना मसालाक़ छोड़ दें
रहनुमाओं में भी कुछ लोगों को ये मंशा तो है
है जिन्हें सब से ज़्यादा दावा-ए-हुब्ब-ए-वतन
आज उन के वजह से हुब्ब-ए-वतन रुसवा तो है
बुझ रहे हैं एक एक कर के अक़ीदों के दिए
इस अंधेरे का भी लेकिन सामना करना तो है
झूठ क्यू बोलें फ़ारोग-ए-मसलाहट के नाम पर
ज़िंदगी प्यारी सही लेकिन हमें मारना तो है
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