Zindagi Shayari-1
आज जाने के ज़िद ना करो
यूँ ही पहलू में बैठे रहो
हाए! मार जाएगे, हम तो लूट जाएगे
ऐसी बातें किया ना करो
तुम ही सोचो ज़रा क्यूँ ना रोके तुम्हें
जान जाती है जब उठाके जाते हो तुम
तुम को अपनी कसम जान-ए-जान
बात इतनी मेरी मान लो
वक़्त के क़ैद में ज़िंदगी है मगर
चाँद घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद है
इन को खो कर अभी जान-ए-जान
उम्र भर ना तरसते रहो
कितना मासूम-ओ-रंगीन है ये समा
हुस्न और इश्क़ के आज मेराज है
कल की किसको खबर जाने-जान
रोक लो आज के रत को
गेसुओं के शिकन है अभी शबनमी
और पलकों के साए भी मदहोश हैं
हुस्न-ए-मासूम को जाने-जान
बेखुदी में ना रुसवा करो
Zindagi Shayari-2
ये ज़िंदगी
आज जो तुम्हारे
बदन के छोटी-बड़ी नसों में
मचल रही है
तुम्हारे पैरों से चल रही है
तुम्हारी आवाज़ में गले से निकल रही है
तुम्हारे लफ़्ज़ों में ढाल रही है
ये ज़िंदगी
जाने कितनी सदियों से
यूँ ही शकलें
बदल रही है
बदलती शक्लों
बदलते जिस्मों में
चलता-फिरता ये इक शरारा
जो इस घड़ी
नाम है तुम्हारा
इसी से सारी चहल-पहल है
इसी से रोशन है हर नज़ारा
सितारे तोडो या घर बसाओ
क़लम उठाओ या सर झूकाओ
तुम्हारी आँखों के रोशनी तक
है खेल सारा
ये खेल होगा नही दुबारा
ये खेल होगा नही दुबारा
Zindagi Shayari-3
दायर-ए-दिल की रात में चिराग सा जला गया
मिला नही तो क्या हुआ वो शाक़ल तो दिखा गया
जूडाईों की ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया
ये सुबह की सफेदीयन ये दोपहर की ज़ार्दियन
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया
पुकारती हैं फुर्सतें कहाँ गई वो सोहबातें
ज़मीन निगल गई उन्हें या आसमान खा गया
वो दोस्ती तो खैर अब नसीब-ए-दुश्मणन हुई
वो छोटी छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया
ये किस खुशी की रेत पर गमों को नींद आ गई
वो लहर किस तरफ गई ये मैं कहाँ समा गया
गये दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलाक़
उठो अमलकशों उठो की आफताब सर पे आ गया
Zindagi Shayari-4
जियेंगे मगर मुस्कुरा ना सकेंगे के अब ज़िंदगी में मुहब्बत नही है
लबों पे तराने अब आ ना सकेंगे के अब ज़िंदगी में मुहब्बत नही है
बहारें चमन में जब आया करेंगी नज़रों के महफ़िल सजाया करेंगी
नज़ारे भी हम को हंसा ना सकेंगी के अब ज़िंदगी में मुहब्बत नही है
जवानी बुलाएगी सावन के रातें ज़माना करेगा मुहब्बत के बातें
मगर हम ये सावन माना ना सकेंगे के अब ज़िंदगी में मुहब्बत नही है
Zindagi Shayari-5
लबों पे नर्म तबस्सुम रचा के धूल जाएँ
खुदा करे मेरे आँसू किसी के कम आएँ
जो िबतादा-ए-सफ़र में दिए बुझा बैठे
वो बदनसीब किसी का सुराग क्या पाएँ
तलाश-ए-हुस्न कहाँ ले चली खुदा जाने
उमंग थी की फ़ाक़ात ज़िंदगी को अपनाएँ
बुला रहे हैं उफ़ाक़ पर जो ज़ार्ड-रु टीले
कहो तो हम भी फसाने के राज़ हो जाएँ
ना कर खुदा के लिए बार-बार ज़िक्र-ए-बहिषट
हम आसमान का मुक़र्रर फरेब क्यों खाएँ
तमाम मैकड़ा सुनसान मागुसर उदास
लबों को खोल कर कुछ सोचती हैं मिनाएँ
Zindagi Shayari-6
ना जाना आज तक क्या शै खुशी है
हमारी ज़िंदगी भी ज़िंदगी है
तेरे घाम से शिकायत-सी रही है
मुझे सच-मूच बड़ी शर्मिंदगी है
मोहब्बत में कभी सोचा है यूँ भी
की तुझ से दोस्ती या दुशमनी है
कोई दम का हूँ मेहमान मूह ना फेरो
अभी आँखों में कुछ कुछ रोशनी है
ज़माना ज़ुल्म मुझ पर कर रहा है
तुम ऐसा कर सको तो बात भी है
झलक मासूमियों में शोखियों के
बहुत रंगीन तेरी सादगी है
इसे सुन लो सबब इस का ना पूछो
मुझे तुम से मोहब्बत हो गई है
सुना है इक नगर है आँसुओं का
उसी का दूसरा नाम आँख भी है
वोही तेरी मोहब्बत के कहानी
जो कुछ भूली हुई कुछ याद भी है
तुम्हारा ज़िक्र आया इत्तेफ़ाक़न
ना बिगाड़ो बात पर बात आ गई है
Zindagi Shayari-7
ये बता दे मुझे ज़िंदगी
प्यार के रह के हमसफ़र
किस तरह बन गये अजनबी
ये बता दे मुझे ज़िंदगी
फूल क्यू सारे मुरझा गये
किस लिए बुझ गई चाँदनी
ये बता दे मुझे ज़िंदगी
कल जो बाहों में थी
और निगाहों में थी
अब वो गर्मी कहाँ खो गई
ना वो अंदाज़ है
ना वो आवाज़ है
अब वो नर्मी कहाँ खो गई
ये बता दे मुझे ज़िंदगी
बेवफा तुम नही
बेवफा हम नही
फिर वो जज़्बात क्यों सो गये
प्यार तुम को भी है
प्यार हम को भी है
फ़ासले फिर ये क्या हो गये
ये बता दे मुझे ज़िंदगी
Zindagi Shayari-8
प्यार मुझसे जो किया तुमने तो क्या पओगि
मेरे हालत के आँधी में बिखर जाओगी
रंज और दर्द के बस्ती का मैं बाशिंदा हूँ
ये तो बस मैं हूँ के इस हाल में भी ज़िंदा हूँ
ख्वाब क्यू देखूं वो कल जिसपे मैं शर्मिंदा हूँ
मैं जो शर्मिंदा हुआ तुम भी तो शरमाओगी
क्यू मेरे साथ कोई और परेशन रहे
मेरी दुनिया है जो वीरान तो वीरान रहे
ज़िंदगी का ये सफ़र तुमको तो आसान रहे
हमसफ़र मुझको बनाओगी तो पछताॉगी
एक मैं क्या अभी आएँगे दीवाने कितने
अभी गूंजेगे मुहब्बत के तराने कितने
ज़िंदगी तुमको सुनाएगी फसाने कितने
क्यू समझती हो मुझे भूल नही पओगि
Zindagi Shayari-9
ज़िंदा हूँ इस तरह की गम-ए-ज़िंदगी नही
जलता हुआ दिया हूँ मगर रोशनी नही
वो मुद्दातें हुईं हैं किसी से जुड़ा हुए
लेकिन ये दिल की आग अभी तक बुझी नही
आने को आ चुका था किनारा भी सामने
खुद उसके पास मेरी ही नय्या गई नही
होतों के पास आए हँसी , क्या मज़ाल है
दिल का मुआमाला है कोई दिल्लगी नही
ये चाँद ये हवा ये फ़िज़ा, सब है मंद मंद
जो तू नही तो इन में कोई दिल-काशी नही
Zindagi Shayari-10
मेरे ख्वाबों के झरोकोन को सजाने वाली
तेरे ख्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है की नही
पूछकर अपनी निगाहों से बताडे मुझको
मेरी रातों के मुक़द्दर में सहर है के नही
चार दिन के ये रफ़ाक़ात जो रफ़ाक़ात भी नही
उम्र भर के लिए आज़ार हुई जाती है
ज़िंदगी यूँ तो हमेशा से परेशन-सी थी
अब तो हर सांस गिरनबार हुई जाती है
मेरी उज़दी हुई नींदों के शाबिस्तानों में
तू किसी ख्वाब के पैकर के तरह आई है
कभी अपनी सी कभी गैर नज़र आती है
कभी इकालास के मूरत कभी हरजाई है
प्यार पर बस तो नही हायमेरा लेकिन फिर भी
तू बता दे की तुझे प्यार करूँ या ना करूँ
तूने खुद अपने तबस्सुम से जगाया है जिन्हें
उन तमन्नाओं का इज़हार करूँ या ना करूँ
तू किसी और के दामन के काली है लेकिन
मेरी रातें तेरी खुश्बू से बसी रहती हैं
तू कहीं भी हो तेरे फूल से आरीज़ के क़सम
तेरी पलकें मेरी आँखों पे झुकी रहती हैं
तेरे हाथों के हरारत तेरे साँसों के महक
तैरती रहती है एहसास के पहना में
ढूँढती रहती हैं तखैल के बाँहें तुझ को
सर्द रातों के सुलगती हुई तनहाई में
तेरा अल्ताफ़-ओ-करम एक हक़ीक़त है मगर
ये हक़ीक़त भी हक़ीक़त में फसाना ही ना हो
तेरी मानुस निगाहों का ये मोहतत पायँ
दिल के खून करने का एक और बहाना ही ना हो
कों जाने मेरी इमरोज़ का फर्डा क्या है
क़ुरबाटें बाद के पाशेमान भी हो जाती है
दिल के दामन से लिपटती हुई रंगीन नज़रें
देखते देखते अंजन भी हो जाती है
मेरी दरमंदा जवानी के तमन्नाओं के
मुज़मािल ख्वाब के तबीर बता दे मुझको
तेरे दामन में गुलिस्ताँ भी है, वीरान भी
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