Thursday, 29 October 2015

Zindagi Shayari in Hindi Page-8

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Zindagi Shayari-1

ज़िंदगी हर कदम पर इम्तिहान लेती है
दो पल की खुशिया देकर रुला देती है
फूल खिलती है, उमीदों की रोशनी देती है
दो ही पल में नौमीदी दिखा देती है
डिलकी दड़कन, प्यार के चिराग बुझा देती है
अंधेरोन में कोहरा बीच्छा देती है.
कुद्रट हाट पकड़ मंज़िल तक लाती है
किस्मत दो पल में ज़मीन दिखा देती है
गीला किसे नही यह किस्मेट दागा देती है
ख्वाब सजाती है दिल में, तोध भी देती है
झूक तो जाएँ, तुम्हारी चाहत कहती है.
दो ही पल तुम्हे, हमें दूर भी कर देती है.
सहन करनी होगी जुदाई, कसक देती है
तड़प कर रात गुजर देती है

Zindagi Shayari-2

मिट गया जब मिटाने वाला फिर सलाम आया तो क्या
दिल के बर्बादी के बाद उन का पेयम आया तो क्या
छूट गईं नब्ज़ें उम्मीदें देने वाली हैं जवाब
अब उधर से नामबर लेके पायँ आया तो क्या
आज ही मिटाना था आए दिल हसरत-ए-दीदार में
तू मेरी नाकामियों के बाद कम आया तो क्या
काश अपनी ज़िंदगी में हम ये मंज़र देखते
अब सर-ए-तुरबत कोई महाशर-खीराम आया तो क्या
सांस उखड़ी आस टूटी छा गया जब रंग-ए-यॅज़
नामबर लाया तो क्या खत मेरे नाम आया तो क्या
मिल गया वो खाक में जिस दिल में था अरमान-ए-डिड
अब कोई खुर्शीद-वश बाला-ए-बम आया तो क्या

Zindagi Shayari-3

इक मुअंमा है समझने का ना समझने का
ज़िंदगी कहे को है ख्वाब है दीवाने का
ज़िंदगी भी तो पाशेमान है यहाँ लाके मुझे
ढूँढती है कोई हिला मेरे मार जाने का
हड्डियाँ हैं कई लिपटी हुई ज़ंजीरों में
लिए जाते हैं जनाज़ा तेरे दीवाने का
तुम ने देखा है कभी घर को बदलते हुए रंग
आओ देखो ना तमाशा मेरे गुंख़ने का
अब इसे दर पे लेजा के सुला दे साक़ी
यूँ बहकना नही अछा तेरे दीवाने का
हम ने छानी हैं बहोट दायर-ओ-हराम के गलियाँ
कहीं पाया ना ठिकाना तेरे दीवाने का
हर नफास उम्र-ए-गुज़शता के है मय्यत “फणी”
ज़िंदगी नाम है मूड मूड के जिए जाने का

Zindagi Shayari-4

मुहब्बातों में दिखावे के दोस्ती ना मिला
अगर गले नही मिलता तो हाथ भी ना मिला
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी ना मिला
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी ना मिला
बहुत अजीब है ये क़ुरबतों के दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी ना मिला
खुदा के इतनी बड़ी क़यानत में मैंने
बस एक शख्स को माँगा मुझे वो ही ना मिला

Zindagi Shayari-5

आज के दौर मई आए दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ मई पत्थर क्यूँ है
जब हक़ीक़त है के हर ज़र्रे मई तू रहता है
फिर ज़मीन पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है
अपना अंजाम तो मालूम है सब को फिर भी
अपनी नज़रों मई हर इंसान सिकंदर क्यूँ है
ज़िंदगी जीने के क़ाबिल ही नही अब “फकीर”
वरना हर आँख मई अश्कों का समंदर क्यूँ है

Zindagi Shayari-6

नवक् अंदाज़ जिधर दीदा-ए-जनन होंगे
नीम-बिस्मिल कई होंगे कई बेजान होंगे
तब-ए-नज़ारा नही आईना क्या देखने दूं
और बन जाएँगे तस्वीर जो हैरान होंगे
तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले
हम तो कल ख्वाब-ए-आदम में शब-ए-हिजरन होंगे
फिर बाहर आई वोही दश्त-ए-नवर्दी होगी
फिर वोही पावं वोही खार-ए-मुगेलन होंगे
नसीहा दिल में तू इतना तो समझ अपने के हम
लाख नादान हुए क्या तुझ से भी नादान होंगे
एक हम हैं के हुए ऐसे पाशेमान के बस
एक वो हैं के जिन्हें चाह के अरमान होंगे
मिन्नत-ए-हज़रत-ए-ईसा ना उठाएँगे कभी
ज़िंदगी के लिए शर्मिंदा-ए-एहसान होंगे
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुटान में “मोमिन”
अब आख़िरी वक़्त में क्या खाक मुसलमान होंगे

Zindagi Shayari-7

तोहमतें चाँद अपने ज़िम्मे धार चले
जिस लिए आए थे सो हम कर चले
ज़िंदगी है या कोई तूफान है
हम तो इस जीने के हाथों मार चले
क्या हमें कम इस गुलों से आए सबा
एक दम आए इधर उधर चले
दोस्तो देखा तमाशा यान का सब
तुम रहो खुश हम तो अपने घर चले
आ बस जी मत जला तब जानिए
जब कोई अफ़सुं तेरा उस पर चले
शमा के मानिंद हम इस बाज़म में
चश्म-नाम आए थे दामन-तार चले
ढूंढते हैं आप से उसको परे
शेख साहिब छोड़ घर बाहर चले
हम जहाँ में आए थे तंहावाले
साथ अपने अब उसे लेकर चले
जून शरर आए हस्ती-ए-बेबुड यान
बारे हम भी अपनी बरी भर चले
एक मैं दिल रेश हूँ वैसा ही दोस्त
ज़ख़्म कितनों का सुना है भर चले
हम ना जाने पाए बाहर आप से
वो भी आड़े आ गया जिधर चले
सक़िया यान लग रहा है चल चलाओ
जब तलाक़ बस चल सके सागर चले
“दर्द” कुछ मालूम है ये लोग सब
किस तरफ से आए थे किधर चले

Zindagi Shayari-8

वो दिल ही क्या तेरे मिलने के जो दुआ ना करे
मैं तुझ को भूल के ज़िंदा रहूं खुदा ना करे
रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िंदगी बनाकर
ये और बात मेरी ज़िंदगी वफ़ा ना करे
ये ठीक है नही मरता कोई जुदाई में
खुदा किसी से किसी को मगर जुड़ा ना करे
सुना है उसको मोहब्बत दुआएँ देती है
जो दिल पे चोट तो खाए मगर गीला ना करे
ज़माना देख चुका है परख चुका है उसे
“क़तील” जान से जाए पर इलतजा ना करे

Zindagi Shayari-9

मौजों का अक्स है खत-ए-जाम-ए-शराब में
या खून उछाल रहा है राग-ए-महताब में
वो मौत है की कहते हैं जिसको सुकून सब
वो आईं ज़िंदगी है जो है इज़तरब में
दोज़ख़् भी एक जलवा-ए-फिर्दौस से हुस्न है
जो इस से बेख़बर हैं वोही हैं अज़ाब में
उस दिन भी मेरी रूह थी माहव-ए-निशात-ए-डिड
मूसा उलझ गए थे सवाल-ओ-जवाब में
मैं इज़तरब-ए-शौक़ कहूँ या जमाल-ए-दोस्त
इक बर्क़ है जो कौंध रही है नक़ाब में

Zindagi Shayari-10

कोई कहता है प्यार एक तरह का नशा है

कोई कहता है प्यार एक तरह की सज़ा है

पर मे कहता हू प्यार करो अगर सकचे दिल से

तो प्यार जीने की एक और वजह है

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