Thursday, 10 December 2015

Man Ki Ekagrata Kaise Badhaye Hindi Tips

मन की एकाग्रता कैसे बढ़ाए


मन बड़ा ही चंचल होता है। अब ऐसे में इसे कैसे संभाले, कैसे शांत रखे एक बड़ी चुनौती लगती है। पर मन पर काबू पाना भी ज़रूरी है मन की शांति बढाने के लिए मन की एकाग्रता बढाने के लिए। चलिए तो फिर जानते हे की मन की एकाग्रता कैसे बढ़ाए। मन के सभी संकल्पों-विकल्पों का किसी एक केंद्र पर स्थित हो जाना एकाग्रता है। दीपक का लौ पर ठहर जाना एकाग्रता है। भंवरे का फूल पर फिदा हो जाना ही एकाग्रता है। गीता में अर्जुन ने भी भगवान श्रीकृष्ण से यही प्रश्न किया कि मन अत्यंत चंचल है, दृढ़ है, बलवान है। आंधी से भी ज्यादा वेगवान है। Man Ki Ekagrata Kaise Badhaye.

Man ki Ekagrata badhane ki tips


पहले इतना कीजिये

एकांत वास, शांत वातावरण, यौगिक क्रियाएं आदि मन की एकाग्रता को बढ़ाती हैं तथा शांति व आनंद का विधान करती हैं। मन जितना निर्मल होगा उतना ही शांत होगा, और फिर जितना शांत रहेगा उतना ही एकाग्र। बातें तो सभी करते है ये करो वो करो लेकिन कैसे कोई नही बताता। आपने गाँधी जी के तीन बंदर के बारे मे सुना होगा बिल्कुल वैसा ही करना है पर तोड़ा modify करके। जैसे

    बुरा मत देखो पर अच्छा ज़रूर देखो।
    बुरा मत सुनो पर अक्चा ज़रूर सुनो।
    बुरा मत बोलो पर अक्चा बोलते रहो।

(Man Ki Ekagrata Kaise Badhaye) आप ध्यान कर सकते है। ध्यान से मन निर्मल स्वच्छहो जाता है। वैसे देखा जाए तो ध्यान सबसे बड़ा साधन है मन की एकाग्रता और मन की शक्तिया  बढ़ने का। एकाग्र बुद्धि वाला व्यक्ति हर निर्णय सोच समझकर सटीक लेता है। मन रूपी झील में दुनियादारी का कंकड़ पड़ने से जो हलचल आ गई थी वह भी प्राणायाम से धीरे-धीरे शांत होने लगती है। लगातार प्रयास से कुछ नियमों का पालन करके व्यक्ति आसानी से एकाग्रता के रथ पर सवार हो सकता है।

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एकाग्रता बढ़ने के फायदे (Man Ki Ekagrata Badhane ke Fayde)

•  आप सब का ख़याल रखने लगते हो, मन साफ होने की वजह से सबके दिल से जुड़े रहते हो।

•  आप जोब ही चाहोगे, जिससे चाहोगे कम होगा ज़रूर। क्योंकि आपकी सोच की शक्ति बढ़ जाती है, बहोत बढ़ जाती है।

•  जो पढ़ोगे जो ध्यान मे रखना चाहोगे वो सीधा दिमाग में उतार जाएगा। क्योंकि आप की दिमाग शक्ति बहोत  बढ़ जाएग।

•  आप जिससे भी बातें करोगे वो डाइरेक्ट दिल से दिल तक करोगे। और बस इसीलिए वो बहोत प्रभावशाली रहेगी।

ये बताने की तो किसी को ज़रूरत नही होती के आप कैसे  अपने मन को निर्मल रख सकते हो पर ध्यान शायद सबको नहीं आता, तो जानते है ध्यान के बारे में।

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ध्यान कैसे करे

ध्यान करना बहोत ही सरल है। इसे आप रोज आधा घंटा कर सकते है, सुबह नहाने के बाद सबसे बढ़िया समय रहता है तब मन भी बड़ा शांत रहता है। किसीभी बाह्य अथवा शरीरके अंदरके भागपर व क्रियापर मन एकाग्र करनेको ध्यान लगाना कहते हैं। इसमें शरीरमें होनेवाली अलग-अलग संवेदनाओंकी ओर तथा मनमें आए विचारोंकी ओर साक्षीभावसे देखना चाहिए। (Man Ki Ekagrata Kaise Badhaye) ध्यानकी आगेकी अवस्थामें व्यक्ति स्वयंकोभी भूलकर निर्विचार अवस्थामें आत्मानंदका अनुभव करता है। बुद्धि एवं मनकी एकाग्रता बढानेके लिए गायत्रीमंत्र, त्रिबंध, प्राणायाम एवं ध्यान, निश्चित उपयोगी सिद्ध होते हैं। 

•  पहले तो आप पद्मासन में बेठ जाए।
•  फिर थोड़ी देर तक योगा प्रॅक्टीस करे। आप कपलभाती कर सकते है।
•  फिर आपको अपने श्वासोश्वस पर ध्यान रखना है।
•  फिर आँखे बाँध कर ले।
•  साँस कब अंदर आ रही है और कब बाहर जा रही है।
•  मन में बहोत विचार आएँगे पर कुछ भी सोचना नही है।
•  सिर्फ़ साँस पर ध्यान रखे सब विचार अपने आप गायब हो जाएँगे।
•  इसे प्रॅक्टीस करते रहे। अपने आप ध्यान में चले जाएँगे।
•  बाद में आपको अनुभव होगा के आपके सर से लेके पाव तक, विशेषता पीठ पर एक उर्जा बह रही है।
•  इसे कॉसमिक एनर्जी कहते है।
•  आधे घंटे बाद आप अपना हाथ आँखो पे घुमाए।
•  और धीरे धीरे आँखे खोले।
•  अब आपको बहोत ही आछा महसूस होगा। सब एकदम शांत शांत लगेगा।

एक रिसर्च से पता चला है की ध्यान करनेवालो को ज़्यादा अच्छा लगता है सो के उठने वालो के मुक़ाबले और ध्यान करने वाले लोग अपना काम ज़्यादा एकाग्र होकर कर सकते है। और जो कॉसमिक एनर्जी आपके अंदर आती है वो आपके सभी दोष, कष्ट मिटाती है।

मन के एकाग्र होने पर ऐसी शक्तियां विकसित होती हैं जो परा मानवीय लगती हैं। ऐसे में उन चीजों को समझने की दृष्टि मिलती है। जिससे मन भय और दुर्बलता से छुटकारा पा जाता है। एकाग्रचित्त होकर किया गया कार्य ऐसे पूर्ण होता है, जैसे अज्ञात रूप से मानव की सहायता कर रहा हो, इस प्रकार एकाग्रता ही ध्यान और योग की पहली सीढ़ी है। बस इतना कीजिये आपके मन की एकाग्रता बढ़ जाएगी। Man Ki Ekagrata Badhaye.

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2 comments:

  1. गांधी जी के बंदर श्रीमद्भगवद्गीता के तीन गुण है तमो रेजो सतोम़ां। क्या है के जो जो अंदर जाएगा वह बाहर तो जरुर आयेगा पर मनुष्य चिंतन मनन आत्म ध्यान से उसे अच्छा बना सकता है। जैसे परमात्मा की सबसे अच्छी प्रोशेस खाना खा कर उसे एक गंतव्य स्थान शौच मार्ग से निकलना तब मनुष्य अच्छा सोच सकता है, बोल सकता है और जो करेगा वह भी अच्छा ही होगा होगा होगा द्रिढ निश्चय करलो आत्म साक्षात्कार हो जायेगा धन्यवाद।

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  2. हरीहर मे भेद मिटते ही ईश्वर साक्षात्कार अवश्य होता है। हरी खाना है और हर शौच मार्ग से होता विसर्जन है। धन्यवाद। नारायण (अन्न खाकर अन्न का संपूर्ण त्याग होजाना) एक बार तमोगुण द्वार से दूसरी बार रजोगुण से भी मुक्ति तीसरी बार सत्वगुण जो सबसे बडी माया मै धर्मिष्ठ मै अच्छे पन का रोग जीसका इलाज कही नही होता ऐसे तीसरी बार नारायण करनेसे स्व की प्राप्ति अहंब्रह्म की अनुभूति धन्यवाद।

    🍃|| "तत्वप्राप्ति" - लक्ष्य अब दूर नहीं ||
    🍃|| श्री हरि: शरणम् ||🍃
    🍀🍂🍃🍀🍃🍂🍀
    
    क्या आप जानते है परमात्मा को जिन्होने सभी मनुष्य रुपी जीवो को अपने जैसा बनाया और सभी मनुष्य ईश्वर अंश जीव का चेतन स्व वह स्वयं निर्गुण निराकार सर्वगुण संपन्न अकर्ता होते हूवे भी, जीसकी सत्ता के बगैर पेड का पत्ता और सारे जीवो की आँख की पलक नहीं झपकती, ना हि आँख की कीकी हिलती है।धन्यवाद। शादि का मतलब सादा गृहस्थ जीवन समझो हिन्दु धर्म का महत्व महानुभव पर नही हम हमारे भूत और भविष्य मे जीते है जब के जीवन सिर्फ वर्तमान मे हि होता है, "कहते है खबर नही पलकी क्या सोचे कलकी" न जाण्युं जानकी नाथे सवारे शुं थवानुं छे। भगवान सिर्फ वर्तमान है। वर्तमान मे रहने के लिए सांसो पर ध्यान, सांसो से प्राण पर ध्यान सबसे पहले यह दोनों हमारा मतलब ईश्वर अंश जीव अविनाशी "मनुष्य शरीर मै" का साथ छोड देते है। बस मनुष्य इतना करले तो कयी जन्मो से चित्त शक्ति को जाग्रत होने मे मदद मिलती है और ध्यान गहराई मे पहोचते ही अखंड अवाज जो कोई नही करता न दो वस्तु चीजो से उत्पन्न हो ति है यह एक हाथ की ताली समझ लो वह सूनाई देती है। उसमें आनंद भरपूर हरीहर है। धन्यवाद।
    
    नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
    🍃🍀🍂🍃🍀🍂🍃

    "आत्मा एक उसके शरीर धारण जीवात्मा अनेक, सत्ता एक चेतन स्व ईश्वर की उसके खेल अनेक" धन्यवाद। वास्तव में अपने शुद्ध चेतन स्वरूप में जड " अहम् " की स्वीकृति से ही हम बँधे है अगर " मैं " को अस्वीकार कर दें तो मुक्त हैं |

    मैं तै मोर तोर की माया | वस कर लीन्हीं जीवन काया ||

    मैं मेरे की जेवरी गल वँध्यो संसार | दास कवीरा क्यों बँधे जाके राम अधार ||

    * जिस अहम् की अपने शुद्धस्वरूप में स्वीकृति से हम बँधते है उसी अहं की अस्वीकृति से छूट जाते है -

    " निर्ममो निरहंकार: स शान्तिमअधिगच्छति" ( गीता )

    || श्री हरि: शरणम् || 
    जन्म हा एका थेंबासारखा असतो
    आयुष्य एका ओळीसारखं असतं,
    प्रेम एका त्रिकोणासारखे असतं पण
    मैत्री असते ती वर्तुळासारखी,
    ज्याला कधीच शेवट नसतो..! "
    वेळ, सत्ता, संपत्ती आणि शरीर साथ देवो अथवा न देवो परंतु चांगला स्वभाव,समजुतदारपणा आणि चांगले संबंध कायम आयुष्यभर साथ देतात....!

    ⛄🎭 शुभ सकाळ 🎭⛄

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